Class 10 Science Chapter 3 धातु एवं अधातु Free PDF Notes in Hindi - Study Friend

Class 10 Science Chapter 3 धातु एवं अधातु Free PDF Notes in Hindi

Class 10 Science Chapter 3 धातु एवं अधातु PDF Notes in Hindi | Metal and Non-metal Notes in Hindi Pdf Download Free


Class 10 Science Chapter 3 धातु एवं अधातु PDF Notes in Hindi

Textbook NCERT
Class 10
Subject Science (Chemistry)
Chapter 3
Chapter Name Metal and Non-metal
Notes Medium Hindi

Class 10 Science Chapter 3 धातु एवं अधातु PDF Notes in Hindi

Class 10 Science Chapter 3 धातु एवं अधातु PDF Notes in Hindi
Class 10 Science Chapter 3 धातु एवं अधातु PDF Notes in Hindi

धातुओं के भौतिक गुणधर्म

उदाहरण – आयरन, कॉपर, ऐलुमिनियम, कैल्सियम, मैग्नीशियम, इत्यादि। 

  • धात्विक चमक - सामान्यतः धातुओं की सतह चमकदार होती है।
  • धातुएं सामान्यतः कठोर (Hard) होती हैं।
  • आघात्वर्ध्यनीयता – धातुओं को पीटकर पतली चादर का रूप दिया जा सकता है अर्थात् धातुएं आघात्वर्ध्यनीय होती हैं। सोना और चांदी सबसे अधिक आघात्वर्ध्यनीय धातुएं हैं।
  • तन्यता – धातुओं को लम्बे तारों (Wires) का ढांचा (Frame) दिया जा सकता है अर्थात् धातुएं तन्य होती हैं। सोना सबसे अधिक तन्य धातु है।
  • धातुएं ऊष्मा की सुचालक होती हैं तथा धातुओं का गलनांक (Boiling Point) भी बहुत अधिक होती हैं। चांदी (Silver) के बाद कॉपर ऊष्मा का सबसे अच्छा चालक है। अर्थात्, सिल्वर ऊष्मा का सबसे अच्छा चालक है।
  • धातुएं विद्युत की सुचालक होती हैं इसलिए विद्युत की चीजों पर रबड़ और PVC (Poly Vinyl Chloride) की परतें चढाई जाती हैं। चांदी विद्युत की सबसे बढ़िया चालक है।
  • ध्वानिक (Sonorous) – सभी धातुएं किसी कठोर सतह से टकराने पर ध्वनि (Sound) उत्पन्न करती हैं इसलिए धातुएं ध्वनिक होती हैं। यही कारण है कि विद्यालय की घंटी पीतल (Brass) की बनी होती है। पीतल एक मिश्र धातु है जो ताम्बे और जस्ते का मिश्रण है।

अधातुओं के भौतिक गुणधर्म

उदाहरण – सल्फर, कार्बन, ऑक्सीजन, फॉस्फोरस, इतयादि।

  • सामान्यतः सारी अधातुएँ या तो ठोस या फिर गैसें होती हैं।
  • अधातुओं में चमक नहीं होती हैं। ये देखने में मलिन होती हैं।
  • अधातुएँ प्रायः भंगुर होती हैं।
  • अधातुएँ ऊष्मा की कुचालक होती हैं।
  • अधातुएँ विद्युत की कुचालक होती हैं।
  • अधातुएँ ध्वानिक नहीं होती हैं।

भौतिक गुणधर्मों के आधार पर तत्वों के वर्गीकरण (Classification) में कुछ अपवाद (Exception) –

सामान्यतः सारी धातुएं कमरे के ताप पर ठोस अवस्था में पायी जाती हैं, जबकि पारा (Mercury) एक ऐसी धातु है जो कमरे के ताप पर द्रव अवस्था में पाई जाती है।

सामान्यतः सारी धातुओं का गलनांक अधिक होता है, जबकि सीजियम और गैलियम दो ऐसी धातुएं हैं जिनका गलनांक बहुत कम है। इन्हें अपने हथेली पर रखने पर ये गल जाती हैं।

सभी अधातुएँ सामान्यतः मलिन होती हैं जबकि आयोडीन एक ऐसी अधातु है जो चमकीली होती है।

हीरा प्रकृति में पाया जाने वाला सबसे कठोर पदार्थ है, जिसका गलनांक और क्वथनांक दोनों ही काफी ज्यादा होता है।

ग्रेफाइट एक ऐसी अधातु है जो विद्युत का सुचालक होती है।

लिथियम, सोडियम और पोटैशियम ये तीनों क्षारीय धातुएं इतनी मुलायम होती हैं कि इन्हें चाकू से काटा जा सकता है। क्योंकि इनका घनत्व और गलनांक बहुत कम होता है।

प्रकृति में कार्बन तीन रूपों में पाया जाता हैं प्रत्येक को अपररूप कहते हैं। हीरा, ग्रेफाइट और बकमिनस्टरफुलेरिन (C60) ये तीनों कार्बन के अपररूप हैं।

धातुओं के रासायनिक गुणधर्म

1. धातुओं का वायु में अभिक्रिया

सभी धातुएँ ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया के परिणामरूप धात्विक ऑक्साइड का निर्माण करती हैं –

  • धातु  + ऑक्सीजन  →  धातु ऑक्साइड
  • 2Cu  +O2→  2CuO (कॉपर (II)ऑक्साइड [काला])
  • 4A  +3O2→  2Al2O3 (एल्युमीनियम ऑक्साइड [काला])

धात्विक ऑक्साइड की प्रकृति

धात्विक ऑक्साइड की प्रकृति क्षारकीय होती है और अधात्विक ऑक्साइड की प्रकृति अम्लीय होती है। एल्युमीनियम ऑक्साइड एवं जिंक ऑक्साइड ये कुछ ऐसी धात्विक ऑक्साइड हैं जो अम्लीय और क्षारकीय दोनों की तरह व्यवहार करता है।

उभयधर्मी ऑक्साइड (Amphoteric Oxide)

वैसी धात्विक ऑक्साइड जो अम्ल तथा क्षारक दोनों के ही साथ अभिक्रिया करके लवण और जल का निर्माण करते हैं, उन्हें उभयधर्मी ऑक्साइड कहते हैं। जैसे - एल्युमीनियम ऑक्साइड, जिंक ऑक्साइड, इत्यादि।

  • 6HCl  +  Al2O3  →  2AlCl3  + 3H2O
  • 2NaOH  + Al2 O3  →   2NaAlO2 (सोडियम ऐलुमिनेट) + H2O

सामान्यतः धातु ऑक्साइड जल में अघुलनशील होते हैं। परन्तु, सोडियम ऑक्साइड और पोटैशियम ऑक्साइड जल में घुलकर क्षार उत्पन्न करते हैं।

  • Na2O(s) + H2O(l) → 2NaOH(aq)
  • K2O(s) + H2O(l)  → 2KOH(aq)

सोडियम एवं पोटैशियम जैसी धातुएं खुले में रखे रहने पर ऑक्सीजन से तेजी से अभिक्रिया करती हैं और आकस्मिक (Accidental) आग पकड़ लेती हैं। इससे बचने के लिए इन धातुओं को किरोसिन तेल (मिटटी  के तेल) में डुबो कर रखा जाता है।

सामान्य तापमान पर मैग्नीशियम, एलुमिनियम, जिंक, लेड आदि धातुओं की सतह पर ऑक्सीजन/ऑक्साइड की पतली परत चढ़ जाती हैं। ऑक्साइड की यह परत धातुओं की ऑक्सीकरण से रक्षा करती हैं।

गर्म करने पर आयरन का दहन नहीं होता है, परन्तु जब बर्नर की ज्वाला (Flame) में लौह चूर्ण डालते हैं तब तेजी से इसका दहन शुरू हो जाता है।

इसी प्रकार कॉपर का भी दहन नहीं होता है परन्तु गर्म करने पर इसपर कॉपर (II) ऑक्साइड की काली परत (Layer)  चढ़ जाती हैं।

चांदी (Silver) और सोना (Gold) ये धातुएं अत्यंत अधिक ताप पर भी ऑक्सीजन से अभिक्रिया नहीं करती हैं।

एनोडीकरण (Anodising)

ऐलुमिनियम पर ऑक्साइड की मोटी परत चढ़ाने की प्रक्रिया को एनोडीकरण कहते हैं। जब यह ऐलुमिनियम वायु के संपर्क (Contact) में आती है तो इस पर ऐलुमिनियम ऑक्साइड की पतली परत चढ़ जाती है। ऐलुमिनियम ऑक्साइड की परत इसे संक्षारण से बचा के रखती हैं। इस पतली परत को मोटा करके इसे संक्षारण से और सुरक्षित किया जा सकता है। इस ऑक्साइड की परत को आसानी (Easily) से रंगने के बाद ऐलुमिनियम की आकर्षक (Attractive) चीजें तैयार की जाती हैं।

2. धातु का जल के साथ अभिक्रिया

धातुएं, जल के साथ अभिक्रिया करके धातु ऑक्साइड का निर्माण करती हैं, साथ ही हाइड्रोजन गैस भी उत्पन्न करती है।
अर्थात्, धातु + जल →  धातु ऑक्साइड  + हाइड्रोजन

अब जल में घुलनशील धातु ऑक्साइड, जल में घुलकर धातु हाइड्रोक्साइड प्रदान करता है।
अर्थात्, धातु ऑक्साइड  +जल →  धातु  हाइड्रोक्साइड

सोडियम और पोटैशियम की जल के साथ अभिक्रिया

सोडियम और पोटैशियम की ठंडी जल से तीव्र (Rapid) अभिक्रिया होती है। साथ ही यह अभिक्रिया इतनी ऊष्माक्षेपी होती है कि अभिक्रिया में उत्सर्जित (Emitted) हाइड्रोजन तत्काल (Immediately) प्रज्ज्वलित (Ignite) हो जाती है।
2K(s) + 2H2O(l)  → 2KOH(aq)  +  H2(g) + उष्मीय ऊर्जा
2Na(s) + 2H2O(l)  → 2NaOH(aq)  +  H2(g) + उष्मीय ऊर्जा

कैल्सियम की जल के साथ अभिक्रिया

कैल्सियम की जल के साथ अभिक्रिया धीमी होती है। परन्तु यहाँ उत्सर्जित ऊष्मा हाइड्रोजन को प्रज्ज्वल्लित करने के योग्य (Capable) नहीं होती है। इस अभिक्रिया में उत्पन्न हाइड्रोजन गैस के बुलबुले (Bubble) कैल्शियम की सतह पर चिपक जाते हैं, जिससे कैल्सियम तैरने लगता है।
Ca(s) + 2H2O(l)  → Ca(OH)2(aq)  +  H2(g)

मैग्नीशियम की जल के साथ अभिक्रिया

मैग्नीशियम शीतल जल (Cold Water) के साथ अभिक्रिया नहीं करता है लेकिन यह गर्म जल के साथ अभिक्रिया करके मैग्नीशियम हाइड्रोक्साइड और हाइड्रोजन गैस उत्पन्न करता है जिसके बुलबुलों की वजह (Reason) से मैग्नीशियम तैरना शुरू कर देता है।

ऐलुमिनियम, आयरन और जिंक की अभिक्रिया

ऐलुमिनियम, आयरन और जिंक न तो गर्म जल से अभिक्रिया करती हैं और न ही शीतल जल से। ये धातुएं केवल भाप (Steam) के साथ अभिक्रिया करती हैं और धातु ऑक्साइड के साथ-साथ हाइड्रोजन गैस भी प्रदान (Provide) करती हैं।
2Al(s) + 3H2O →  Al2O3(s) + 3H2(g)
3Fe(s) + 4H2O →  Fe2O4(s) +  4H2(g)

लेड (Pb), कॉपर (Cu), चांदी (Ag) तथा सोना (Au) ये धातुएं जल के अभिक्रिया नहीं करती हैं।

3. धातुओं की अम्ल के साथ अभिक्रिया

धातुएं अम्ल के साथ अभिक्रिया करके लवण तथा हाइड्रोजन गैस प्रदान करती है। अर्थात्, धातु +तनु अम्ल  → लवण +हाइड्रोजन गैस      
जैसे - धातु + तनु HCl  →  लवण + H2(g)
  • Mg+ तनु HCl →   MgCl2 + H2(g) 
  • Al+ तनु HCl →  AlCl3 + H2(g)
  • Zn+ तनु HCl → ZnCl2 + H2(g)
  • Fe+ तनु HCl → FeCl3 + H2(g)

धातुओं का नाइट्रिक अम्ल से अभिक्रिया

नाइट्रिक अम्ल HNO3 एक प्रबल (Strong) ऑक्सीकारक है। इसलिए जब धातुएं नाइट्रिक अम्ल से अभिक्रिया करती हैं तो HNO3 उत्पन्न हाइड्रोजन गैस को तुरंत ऑक्सीकृत करके जल का निर्माण करती हैं और HNO3 खुद नाइट्रोजन के किसी ऑक्साइड (e.g. N2O, NO, NO2) अपचयित हो जाती है। अतः धातुएं जब नाइट्रिक अम्ल से अभिक्रिया करती हैं तब हाइड्रोजन गैस उत्सर्जीत नहीं करती हैं।

Note: परन्तु, मैग्नीशियम Mg(12) और मैंगनीज Mn(25) ये ऐसी धातुएं हैं जो अति तनु HNO3 के साथ अभिक्रिया करके हाइड्रोजन गैस प्रदान करती हैं।
कॉपर तनु HCl के साथ अभिक्रिया नहीं करती है।

अम्लराज / एक्वा रेजिया (Aqua Regiya)

जब सान्द्र हाइद्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) और नाइट्रिक अम्ल (HNO3) को 3:1 अनुपात में मिलाया जाता है तो तैयार मिश्रण को ही अम्लराज कहते हैं। तुरंत बना अम्लराज रंगहीन (Achromatic) होता है जो थोड़ी देर बाद नारंगी हो जाता है।
अम्लराज़ भभकता हुआ द्रव होता है जो प्रबल संक्षारक की तरह कार्य करता है। यह आमतौर पर सोना (Au), प्लैटिनम (Pt) और पैलेडियम (Pd) को गला सकता है जबकि दोनों में से किसी भी अम्ल के पास इतनी क्षमता नहीं होती है कि वो अकेले इन धातुओं को गला सके। Aqua Regiya, लैटिन भाषा का शब्द है जिसका मतलब “शाही जल अर्थात् राजा का पानी” होता है।

सक्रियता श्रेणी

वैसी सूची जिसमें धातुओं को उसकी क्रियाशीलता के आधार पर अवरोही क्रम (Descending order) में व्यवस्थित की जाती है, सक्रियता श्रेणी (Reactivity Series) कहलाती है।
अगर धातु A, धातु B को उसके लवण विलयन से विस्थापित (Displace) करके स्वयं B का स्थान ग्रहण कर लेता है ; तो कहा जाता है कि धातु A, धातु B की अपेक्षा अधिक अभिक्रियाशील है। अर्थात् 
धातु (A)  +  धातु  (B) का लवण विलयन → धातु  (A) का लवण विलयन +धातु (B)

सक्रियता श्रेणी

  • पोटैशियम
  • सोडियम
  • कैल्सियम
  • मैग्नीशियम
  • एलुमिनियम
  • जिंक
  • आयरन
  • लेड
  • [हाइड्रोजन]
  • कॉपर (तम्बा)
  • मर्करी (पारद) 
  • सिल्वर (चांदी)
  • गोल्ड (सोना)
संयोजकता कोश (Valence Shell) के पूर्ण होने के कारण ही नोबल गसें (उत्कृष्ट गसें) अक्सर अभिक्रिया नहीं करतीं हैं।

आयनिक यौगिक या वैद्युत संयोजक यौगिक:-

जब इलेक्ट्रॉनों का स्थानांतरण धातु से अधातु में होता है तो इस प्रकार से बनने वाले यौगिकों को आयनिक यौगिक या वैद्युत संयोजक यौगिक कहते हैं। उदाहरण के लिए सोडियम और क्लोरीन परमाणुओं के बीच एक-एक इलेक्ट्रॉन का लेन-देन होता है जिससे सोडियम और क्लोराइड आयन परस्पर आकर्षित (Attract) होते हैं और मजबूत स्थिर वैद्युत बल से बंध जाते हैं। इस प्रकार सोडियम क्लोराइड का निर्माण होता है। सोडियम क्लोराइड NaCl अणु के रूप में नहीं पाया जाता बल्कि यह विपरीत आयनों का समुच्चय (समूह) होता है।

आयनिक यौगिकों के कुछ खास गुणधर्म –

1. भौतिक प्रकृति – विपरीत आयनों के बिच मजबूत आकर्षण बल के कारण आयनिक यौगिक ठोस, कठोर और भंगुर होते हैं अर्थात् अत्यधिक दाब डालने पर यह टुकड़ों में टूट जाते हैं।
2. गलनांक एवं क्वथनांक – विपरीत आयनों के अंतर-आयनिक आकर्षण को तोड़ने के लिए ऊर्जा की अत्यधिक मात्रा की जरुरत होती है। अर्थात् आयनिक यौगिकों का गलनांक एवं क्वथनांक अधिक होता है।
3. घुलनशीलता – आयनिक यौगिक सामान्यत: जल में घुलनशील होते हैं परन्तु किरोसिन, पेट्रोल आदि में अघुलनशील होते हैं।
4. विद्युत चालकता - ठोस अवस्था में आयनिक यौगिक विद्युत का चालन नहीं करते हैं जबकि गलित अवस्था में आयनिक यौगिक विद्युत का चालन करते हैं।

धातुओं की प्राप्ति

पृथ्वी की भू-पर्पटी धातुओं का और समुद्री जल लवणों का मुख्य स्रोत है। प्राकृतिक रूप से, पृथ्वी की भू-पर्पटी में पाए जाने वाले तत्वों या यौगिकों को खनिज़ (Mineral) कहते हैं। वैसे खनिज़ जिनमें किसी विशेष धातु की पर्याप्त मात्रा पायी जाती हो और जिसे निकालना लाभकारी हो, अयस्क (Ore) कहलाते हैं।

धातुओं का निष्कर्षण (Extraction of Metals)

1. निम्न अभिक्रियाशील

सक्रियता श्रेणी में सबसे नीचे वाली धातुएं सबसे कम अभिक्रियाशील होने के कारण, प्रकृति में स्वतंत्र अवस्था (Free State) में पाई जाती हैं। e.g. सोना, चांदी, प्लैटिनम और कॉपर। कॉपर और सिल्वर अपने सल्फाइड और ऑक्साइड के अयस्क के रूप में भी पाए जाते हैं।

2. मध्यम अभिक्रियाशील

सक्रियता श्रेणी की मध्य की धातुओं (Zn, Fe, Pb, etc) की अभिक्रियाशिलता मध्यम (Medium) होती है। ये धातुएं मुख्यतः ऑक्साइड, सल्फाइड और कार्बोनेट के रूप में पायी जाती हैं।

3. उच्च अभिक्रियाशील

सक्रियता श्रेणी में सबसे ऊपर की धातुएं (K, Na, Ca, Mg, Al) अत्यधिक अभिक्रियाशील होने के कारण कभी भी स्वतंत्र अवस्था में नहीं मिलती हैं।
पृथ्वी में ऑक्सीजन की प्रचुर मात्रा और इसकी अत्यधिक अभिक्रियाशिलता के कारण कई धातुओं के अयस्क  ऑक्साइड के रूप में पाई जाती हैं।

अयस्कों का समृद्धीकरण (Enrichment of Ores)

पृथ्वी से खनित (खोदी हुई) अयस्कों में रेत, मिट्टी, आदि कई अशुद्धियां (Impurities) होती हैं। इन अशुद्धियों को गैंग (Gangue) कहते हैं। धातुओं के निष्कर्षण से पूर्व (पहले) इन अशुद्धियों को अयस्कों से अलग करना आवश्यक होता है, जिसके लिए विभिन्न तकनीक अपनाई जाती है। ये तकनीकें अयस्कों और गैंग के भौतिक एवं रासायनिक गुणधर्मों पर आधारित होते हैं।

सक्रियता श्रेणी में नीचे आने वाली धातुओं का निष्कर्षण

ये धातुएं काफ़ी अनभिक्रिय होती हैं। इन धातुओं के अयस्कों से धातु प्राप्त करने का एक मात्र तरीका अयस्कों को गर्म करना है। स्टेप्स निम्नलिखित हैं-
E.g. 1
  1. 2HgS (सिनाबार पारद का अयस्क ) + 3O2(g) → 2HgO (मरक्यूरिक ऑक्साइड)  + 2SO2(g)
  2. 2HgO (s)   → 2Hg(l) + O2(g) [HgO का अपचयन]
E.g. 2
  1. 2Cu2S(s) (कॉपर सल्फाइड) +3O2(g) → 2Cu2O (क्युपरस ऑक्साइड)  + 2SO2(g)
  2. 2Cu2O(s) + Cu2S → 6Cu(s) + SO2(g)

सक्रियता श्रेणी के मध्य में आने वाली धातुओं का निष्कर्षण

ये धातुएं (आयरन, जिंक, लेड, कॉपर) मध्यम अभिक्रियाशील होती हैं और ये प्रकृति में प्रायः सल्फाइड या कार्बोनेट के रूप में पाया जाता है।

#Step-01. धातुओं को उसके सल्फाइड और कार्बोनेट अयस्कों से प्राप्त करना मुश्किल होता है, जबकि धातुओं को उसके ऑक्साइड अयस्कों से प्राप्त करना आसान। यही कारण है कि धातुओं के निष्कर्षण से पूर्व सल्फाइड और कार्बोनेट अयस्कों को ऑक्साइड में परिवर्तित करना अत्यावश्यक होता है।

भर्जन (Roasting) - सल्फाइड अयस्क को वायु की उपस्थिति में अधिक ताप पर गर्म करके ऑक्साइड अयस्क प्राप्त करने की प्रक्रिया को भर्जन कहते हैं।
e.g. - 2ZnS(s) + 3O2(g) → 2ZnO(s) + 2SO2(g)

निस्तापन (Calcination) - कार्बोनेट अयस्क को सिमित (Limited) वायु की उपस्थिति में अधिक ताप पर गर्म करके ऑक्साइड अयस्क में बदलने को निस्तापन कहते हैं।
e.g. - ZnCO3(s) → ZnO(s) + CO2(g)

#Step-02. अब धातु ऑक्साइड से धातु को प्राप्त करने के लिए कार्बन जैसे उपयुक्त अपचायक का उपयोग किया जाता है।
e.g. - ZnO(s) + C(s) → Zn(s) + CO(g) 

अपचयन प्रक्रम – धातुओं को उनके यौगिकों से प्राप्त (Obtain) करना भी अपचयन कहलाता है।
Alternative of Step-02  धात्विक ऑक्साइड के अपचयन के लिए कार्बन (कोयला) ही एकमात्र तत्व नहीं है बल्कि इसके अलावा Na, Ca और Al जैसे अत्यधिक अभिक्रियाशील तत्व भी निम्न (Low) अभिक्रियाशील तत्वों को विस्थापित करके अपचायक का काम कर सकते हैं।
e.g. – 3MnO2(s) + 4Al(s) → 3Mn(l) + 2Al2O3(s) + ऊष्मा

ये विस्थापन अभिक्रियाएँ अत्यधिक ऊष्माक्षेपी (Exothermic) होती हैं। इन अभिक्रियाओं में इतनी ज्यादा ऊष्मा उत्पन्न होती हैं कि धातुएं गलित अवस्था में प्राप्त होती हैं। यही कारण है कि आयरन (III) ऑक्साइड और एलुमिनियम की अभिक्रिया से मिलने वाली आयरन का उपयोग रेल की पटरी और मशीनी पुर्जों की दरारों को जोड़ने (Attach करने) के लिए किया जाता है। यह अभिक्रिया थर्मित अभिक्रिया कहलाती है।
Fe2O3(s) + 2Al(s)  → 2Fe(l) + Al2O3(s) + ऊष्मा

सक्रियता श्रेणी में सबसे ऊपर आने वाली धातुओं का निष्कर्षण

ये धातुएं अत्यंत अभिक्रियाशील होती हैं। इसके ऑक्साइड को कार्बन के साथ गर्म करके ऐसे धातु को प्राप्त करना संभव नहीं है। इन धातुओं की बंधुता कार्बन की अपेक्षा ऑक्सीजन के प्रति ज्यादा होती है अर्थात् ये धातुएं ऑक्साइड के रूप में रहना पसंद करती हैं। इन धातुओं को विद्युत् अपघटनी अपचयन (Electrolysis) द्वारा प्राप्त किया जाता है। उदाहरणार्थ:- 
कैथोड (ऋण आवेशित इलेक्ट्रोड) पर - Na^+ + e^- → Na
कैथोड (ऋण आवेशित इलेक्ट्रोड) पर - 2Cl^- →  Cl2 + 2e^-

धातुओं का परिष्करण – अपचयन प्रक्रमों के बाद प्राप्त धातुओं में भी कुछ अपद्रव्य रह जाते हैं जिन्हें हटाने के लिए विद्युत अपघटनी परिष्करण सबसे प्रचलित विधि है। इस विधि की सहायता से कॉपर, जिंक, टीन, निकेल, सिल्वर, गोल्ड जैसे धातुओं का परिष्करण किया जाता है।
  • इस विधि में अशुद्ध धातु का एनोड और शुद्ध धातु की पतली परत का कैथोड बनाया जाता है।
  • विद्युत अपघट्य के रूप में धातु के लवण विलयन (Salt Solution) का ही उपयोग किया जाता है। 
  • विलेय अशुद्धियाँ विलयन में घुल जाती हैं जबकि अविलेय अशुद्धियाँ एनोड तली पर निक्षेपित (Deposite) हो जाती है, इसे ही एनोड पंक कहते हैं।

संक्षारण के उदाहरण

सिल्वर को अगर खुली वायु में छोड़ दिया जाए तो सिल्वर वायु में उपस्थित सल्फर  के साथ अभिक्रिया करके सिल्वर साल्फाइड का निर्माण करता है। जिसके कारण खुली वायु में रखी सिल्वर की वस्तुएं कुछ दिनों में काली हो जाती हैं।

कॉपर वायु में विद्यमान आर्द्र CO2  के साथ अभिक्रिया करके एक हरा पदार्थ बेसिक कॉपर कार्बोनेट का निर्माण करता है जिसके कारण कॉपर में पहले से उपस्थित भूरे रंग की चमक गायब हो जाती है और कॉपर हरे रंग का हो जाता है।

इसी प्रकार लम्बे समय तक आर्द्र (नमीयुक्त) वायु में उपस्थित रहने से लोहे पर भूरे रंग की परत चढ़ जाती है। इसे ही जंग (Rust) कहते हैं।

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